International Advance Journal of Engineering,Science & Management
The Role of Emotional Intelligence in Adequate Leadership Mr. Ravi Kumar Sharma, Administrator, Sneh Teachers Training College, Muhana, Sanganer, Jaipur Page No.: 1-3|
Year: 2024|
Vol.: 21|
Issue: SpecialEdition
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भावनात्मक बुद्धिमत्ता हमें एक नेता अथवा प्रबंधक के रूप में पारस्परिक संबंधोें को विवेकपूर्ण और सहानुभूतिपूर्वक संभालने में सक्षम बनाती हैं। नेतृत्व प्रभावषाली बनाने के लिए आवष्यक है कि नेता अपने कर्मचारियों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े। भावनात्मक बुद्धिमत्ता के साथ नेतृत्व करने की क्षमता विकसित करके एक प्रभावषाली नेता की भूमिका निभाई जा सकती है। क्योंकि इसके माध्यम से आप अपने कर्मचारियों के भीतर से उनके सर्वश्रेष्ठ को बाहर निकाल सकते है, उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रहकर तथा उनको सराहना का एहसास करवा
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महिला लेखन का उत्तरदायित्व दीप्ति कुमारी, रिसर्च स्कॉलर, हिंदी विभाग, मगध विश्वविधालय Page No.: 9-14|
Year: 2019|
Vol.: 11|
Issue: II
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(सांस्कृतिक संक्रमण काल में महिला लेखन का उत्तरदायित्व) आज जिस युग में हम साँस ले रहे हैं वह विभिन्न संस्कृतियों का ‘संक्रमण काल’ है। विशेषतया भारतीय एवं पाश्चात्य संस्कृति के समागम का। इस संक्रमण के दौर में भारतीय संस्कृति का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। क्योंकि भारतीय मानव को यदि गौर से देखा जाए तो वह भी बेमेल संगम या अवांछित मिश्रण सा नजर आता है। यह संगम फूल में सुगंध का नहीं है, अपितु दूध में नींबू का है। नींबू जिस प्रकार दूध के अस्तित्व को समाप्त कर उसे नया रूप देता है, उसी प्रकार भारती
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महाकाव्येषु चित्रिता सरस्वती अजय कुमार शर्मा, (संस्कृत विभाग), शोध विद्वान, सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) | पुष्पा देवी, सह - प्राध्यापक(संस्कृत विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) Page No.: 13-25|
Year: 2022|
Vol.: 17|
Issue: SpecialEdition
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महाभारत, भारत के दो महान महाकाव्यों में से एक, शास्त्रीय संस्कृत में रचित और महर्षि व्यास द्वारा रचित, केवल एक साहित्यिक कृति नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक ज्ञान, धार्मिक सिद्धांतों और सांस्कृतिक परंपराओं का व्यापक भंडार है। महाभारत में सरस्वती का चित्रण एक पवित्र नदी, ज्ञान की देवी, माँ, और पत्नी के रूप में किया गया है। आदिपर्वण, सभापर्वण, और वनपर्वण में सरस्वती को पवित्र नदी और तीर्थ स्थल के रूप में दर्शाया गया है, जबकि शांतिपर्व में उन्हें वेदों की माता और ज्ञान की देवी के रूप में चित्रित किया ग
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स्वयं प्रकाश के कथा साहित्य में सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का परिवर्तन सरस्वती कुमारी मीणा, शोधार्थी, हिंदी विभाग, दिल्ली यूनिवर्सिटी | डॉ अशोक कुमार, सह - प्राध्यापक, हिंदी विभाग, दिल्ली यूनिवर्सिटी Page No.: 17-25|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: III
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उपन्यास में यथार्थवाद सच की खोज करने की कोशिश करता है। वह इस मान्यता पर आधारित है कि मानव जीवन का सच मानव और समाज से उसके सम्बन्ध के बोध के माध्यम से ही पाया जा सकता है। नगरीय जीवन में तो बहुत ही शीघ्र गति से परिवर्तन और विघटन हो रहा है शिक्षा, वैज्ञानिकता, भौतिक सुविधा आदि के कारण मनुष्य अधिकाधिक संवेदनाहीन बन रहा है। इसी कारण मनुष्य में स्थित करुणा, प्रेम, आत्मीयता लुप्त हो गई है और उसका स्थान स्वार्थीवृत्ति, क्रूरता, टूटन आदि ने लिया है। व्यक्ति स्वातंत्र्य और अधिकार की भावना तथा परिवार विघटन
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कबीर की सामाजिक विचारधारा Premlata, Research Scholar (Hindi), Janaradan Rai Nagar Vidyapeeth, Udaipur (Rajasthan). | Dr. Rennu, Professor (Hindi), Janaradan Rai Nagar Vidyapeeth, Udaipur (Rajasthan). Page No.: 14-18|
Year: 2020|
Vol.: 13|
Issue: II
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भक्तिकाल के कवियों ने मुख्यतः स्वान्तःसुखाय रचना की। कबीर उसी धारा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी कविताई एवं समाज-सुधार दोनों का भारतीय जन-मानस पर गहरा प्रभाव पड़ा। हिन्दी आलोचना में उनके दोनों रूपों को लेकर बहस होती रही है। यद्यपि उन्होंने समाज-सुधारक होने की कोई घोषणा नहीं की, पर उनकी रचनाओं में कवित्व और समाज-सुधार दोनों का समावेश मिलता है। तो सवाल है कि कबीर की पहचान किस रूप में की जाए? हिन्दी के आलोचकों ने कबीर का मूल्यांकन किस रूप में किया? कबीर के कवि होने, या समाज-सुधारक होने के विवाद का त
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जयशंकर प्रसाद के कथा साहित्य में भारतवर्ष का गौरवशाली परिदृश्य पृथ्वी राज, अनुसन्धान विद्वान्, हिंदी विभाग, श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टीबड़ेवाला विश्विधलय, चूरू रोड, झुंझनू, राजस्थान। | डॉ कुलदीप गोपाल शर्मा, सह-आचार्या, हिंदी विभाग, श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टीबड़ेवाला विश्विधलय, चूरू रोड, झुंझनू, राजस्थान। Page No.: 44-47|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: I
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के क्रमिक विकास के अनुशीलन के लिए हमें प्रसाद जी के नाटकों पर विचार करना आवश्यक है। प्रसाद जी उत्तर वैदिक काल के अन्तर्गत हरिश्चन्द्र के इतिहास की उस तह में गये हैं जहाँं मोह, पुत्र अधिकार को रहित और पुनः शेष के द्वारा, प्रस्तुत किया है। पुनः शेष और विश्वामित्र के संबंधों पर प्रकाश डाला गया है। महाभारत की घटना में भी इतिहास के साथ-साथ उस संस्कारित पृष्ठभूमि को प्रस्तुत किया है और भारतीय जातीय एकता भी युधिष्ठिर के द्वारा प्रकट हुई जिसमें उन्होंने कहा है कि दूसरों के संघर्ष के ल
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स्वतंत्रता आंदोलन पर हिंदी साहित्य का योगदान का एक अध्ययन डॉ मंजू, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, देवता महाविद्यालय मोरना बिजनौर, उतर प्रदेश (भारत) Page No.: 57-62|
Year: 2016|
Vol.: 5|
Issue: I
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भारत के स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी का बड़ा महत्व रहा। महात्मा गांधी गुजराती थे, सी. राजगोपालाचारी मद्रासी थे, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर व देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय जैसे महान दार्शनिक व क्रांतिकारी बंगाली थे, ऐसे ही देश के अलग-अलग प्रांतों के क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में खुद को खपा दिया। उन्होंने स्वाधीनता का संदेश देशभर में जन-जन तक पहुंचाने के लिए हिंदी को चुना। राष्ट्र निर्माण की दिशा में काम करने वाले बुद्धिजीवियों की राय है कि सभी क्षेत्रीय बोलियों का परस्पर सम्मान
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मृणाल पांडेय कृत निबंध संग्रह परिधि पर स्त्री में नारी व्यवसाय मंजु बाला,शोधार्थी,पीएच. डी., हिंदी विभाग, श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय,हनुमानगढ़ Page No.: 72-73|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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मृणाल पाण्डे जी ने कई निबन्ध लिखे जिसमें उन्होनें सभी वर्ग के लोगों की समस्याओं का वर्णन किया, लेकिन अपने निबन्धों में उन्होनें विशेष रूप से नारी की समस्यओं को उठाया है और यथानुसार उसका समाधान भी बताया है। यद्यपि मृणाल पाण्डे जी स्वयं कामकाजी महिला रही है अतः वे नौकरी या अन्य काम करने वाली महिलाओं की समस्याओं के और अधिक नजदीक है। इसलिए उनके निबन्धों में उन नीचे तबके की कामकाजी महिलाओं का चित्रण है, जिनका कि बड़े-बड़े कारखाने के मालिक लगातार आर्थिक शोषण करते है। पाण्डेय जी ने कर्नाटक के कन्नौर जिले
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"हरिवंशराय बच्चन" को श्रद्धांजलि दीप्ति कुमारी, रिसर्च स्कॉलर, हिंदी विभाग, मगध विश्वविधालय Page No.: 59-64|
Year: 2020|
Vol.: 13|
Issue: II
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उन्नीसवीं सदी का महान कवि/लेखक/विचारक जो आधी सदी से भी अधिक समय तक आधुनिक साहित्य जगत में देदीप्यमान नक्षत्र ध्रुव तारे के समान चमका और दिन-प्रतिदिन उज्जवलता की ओर बढ़ता गया। गेहुँआ रंग लिए, लम्बे घुँघराले वालों वाला, चिंतकों व दार्शनिकों सी गम्भीरता, मधुर सौम्य मुस्कान, कहानीनुमा आँखें, उस पर मोटे फ्रेम का चश्मा जिनके चेहरे पर रहता था उन्हीं का नाम था हरिवंशराय बच्चन। स्वभाव से कोमल, उदार, शालीन, व्यवहारिक तथा कुशल एवं भावुक। कवि की यही भावुकता मधुशाला में छलक पड़ती है। कवि कह उठता है - भावुकता
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मृणाल पांडेय कृत एक स्त्री का विदागीत कहानी संग्रह में नारी जीवन कोमल,शोधार्थी,पीएच. डी., हिंदी विभाग , श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय,हनुमानगढ़ Page No.: 74-75|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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‘एक स्त्री का विदागीत’ नामक संकलन की कहानियां हमारे समय और खुद कलाकार की रचनात्मक शक्ति को आखिरी मंूद तक निहारकर, उससे वह अंतिम छान पाने की कोशिश करती है, जो प्रचार माध्यम की पकड़ से परे, कहानी कला का विशुद्ध रूप है। ‘एक स्त्री का विदागीत’ कहानी सावित्री नाम की एक विधवा स्त्री की है, जिसके चार बच्चे है। दो बेटे, दो बेटियां। बड़ा बेटा और बहू ने अपनी गृहस्थी बाहर बसा ली। वह अपने छोटे बेटे रमेश और बहू सुशमा के साथ रहती हैं। सुषमा एक कॉलेज में लैक्चरर है। उसके जाने के बाद सावित्री अकेली रह जाती है और
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"स्त्री" परम्पराओ की दो गज ज़मीन के नीचे (लेख) दीप्ति कुमारी, रिसर्च स्कॉलर, हिंदी विभाग, मगध विश्वविधालय Page No.: 65-69|
Year: 2017|
Vol.: 8|
Issue: I
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प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार नारी को तपस्या, त्याग, तप, बलिदान, नम्रता, क्षमा, सेवा, पति सेवा, आदि गुणों से विभूषित गृहस्वामिनी की प्रतिमूर्ति माना गया है। मनु ने तो यहाँ तक लिखा है- ‘‘पिता रक्षति कौमार्य भर्ता रक्षति यौवेने। ‘‘रक्षांति स्थविरे पुत्र न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति।’’ अर्थात् बाल्यावस्था में पति और वृद्धावस्था में स्त्री की रक्षा पुत्र करते है। स्त्री को कभी इनसे पृथक् स्वतंत्र रहने का विधान नहीं है। ऐसा लिखकर मनु ने नारी शक्ति पर प्रश्नचिन्ह् लगाया है? मध्यकालीन सीमाओं में ब
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हरिशंकर परसाई की कहानियों में व्यंग्य का अध्ययन डॉ मंजू, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, देवता महाविद्यालय मोरना बिजनौर, उतर प्रदेश (भारत) Page No.: 82-89|
Year: 2017|
Vol.: 7|
Issue: I
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लेखन में सबसे खास बात परसाई जी की यह थी कि वह खुद को भी व्यंग्य का एक विषय मानते थे। एक जगह वह अपनी बिना टिकट यात्राओं के बारे में लिखते हैं, “एक विद्या मुझे और आ गई थी- बिना टिकट सफर करना। जबलपुर से इटारसी, टिमरनी, खंडवा, इंदौर, देवास बार-बार चक्कर लगाने पड़ते थे और पैसे थे नहीं। मैं बिना टिकट गाड़ी में बैठ जाता था। तरकीबें बचने की बहुत आ गई थीं। पकड़ा जाता तो अच्छी अंग्रेजी में अपनी मुसीबत का बखान करता। अंग्रेजी के माध्यम से मुसीबत बाबुओं को प्रभावित कर देती और वे कहते-‘लेट्स हेल्प द पुअर बॉय’
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उषा प्रियंवदा के उपन्यासों में प्रयुक्त भाषा, प्रतीक और कथानक निर्माण की प्रणाली रूबी शर्मा (हिंदी), शोधकर्ता, सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) | डॉ. कृष्णा चतुर्वेदी (हिंदी), प्रोफेसर (हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) Page No.: 85-92|
Year: 2023|
Vol.: 19|
Issue: II
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उषा प्रियंवदा एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं जो अपने उपन्यासों के लिए जानी जाती हैं जो मुख्य रूप से भारतीय महिलाओं के अनुभवों पर केंद्रित हैंए जो नारीत्वए पहचान और सामाजिक अपेक्षाओं जैसे विषयों पर प्रकाश डालते हैं। भाषाए प्रतीकवाद और कथा निर्माण का उनका उपयोग विशेष रूप से विशिष्ट और समृद्ध है। प्रियंवदा की भाषा सरलए स्पष्ट और सीधी हैए जिससे पाठक उनके संदेशों को आसानी से समझ सकते हैं। वह विभिन्न वस्तुओंए छवियों और घटनाओं के माध्यम से अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हुए बड़े पैमाने पर प्रतीकवा
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प्रवासी हिंदी साहित्य में मानवीय संवेदना लक्ष्मी देवी, शोधार्थी पीएच. डी., हिंदी विभाग, श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय,हनुमानगढ़ Page No.: 92-94|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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“प्रवास’ शब्द का अर्थ है, विदेश जाना, देशान्तरवास, विदेश यात्रा या घर से बाहर रहना। दूसरे देश या विदेश में रहने वाला व्यक्ति प्रवासी होता है। हर साल, हजारों-लाखों भारतीय बेहतर अवसरों की तलाश और उम्मीद में प्रवास करते हैं। इन प्रवासी भारतीयों में रचनात्मकता से जुड़े कुछ ऐसे साहित्यकार भी हैं जिन्होंने विदेशों में कार्य करते हुए भी अपने देश की मित्रता, संस्कृति और सभ्यता को सहेज कर रखा है। ये रचनाकार निरन्तर अपनी साहित्यिक साधना से विदेशों में अपने साहित्यिक कौशल को सिद्ध करते हैं। वास्तव में साहित
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डिजिटल इंडिया की भूमिका और प्रभाव Anil Kumar, Research Scholar, Department of Hindi | Dr. Minesh Jain, Professor, Department of Hindi Page No.: 157-162|
Year: 2024|
Vol.: 22|
Issue: II
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"डिजिटल इंडिया" भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी और क्रांतिकारी पहल है, जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करना है। इस योजना का आरंभ 2015 में हुआ था, और यह सूचना प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करके भारत के सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक ढांचे में महत्वपूर्ण सुधार लाने का लक्ष्य रखता है। डिजिटल इंडिया की कार्ययोजना में मुख्य रूप से डिजिटल अवसंरचना का निर्माण, ई-गवर्नेंस के तहत सरकारी सेवाओं का डिजिटलीकरण, डिजिटल साक्षरता का प्रचार-प्रसार, और नागरिकों के सशक्तिकरण के लिए कदम उठाए गए हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की भूमिका और प्रभाव का समग्र विश्लेषण करना है। इसमें डिजिटल इंडिया के तहत किए गए प्रमुख प्रयासों, जैसे कि आधार, भारतनेट, उमंग ऐप, डिजिलॉकर जैसी सेवाओं का मूल्यांकन किया गया है, जो सामाजिक समावेशन, आर्थिक सशक्तिकरण, और शासन प्रणाली की पारदर्शिता को बढ़ावा देती हैं। साथ ही, यह शोध पत्र डिजिटल इंडिया की चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है, जैसे कि डिजिटल साक्षरता की कमी, साइबर सुरक्षा समस्याएँ, और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना की अपर्याप्तता।
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उषा प्रियंवदा का जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व रूबी शर्मा (हिंदी), शोधकर्ता, सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान ) | डॉ. कृष्णा चतुर्वेदी (हिंदी), प्रोफेसर (हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर (राजस्थान) Page No.: 136-141|
Year: 2022|
Vol.: 17|
Issue: III
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उषा प्रियंवदा एक प्रख्यात भारतीय लेखिका, अनुवादक और शिक्षाविद हैं जिन्हें हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। भारत में जन्मी, उन्होंने अपनी शिक्षा संयुक्त राज्य अमेरिका में पूरी की और कई विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर के रूप में काम किया। प्रियंवदा की साहित्यिक रचनाएँ मुख्य रूप से भारतीय महिलाओं के अनुभवों, लिंग, कामुकता और सामाजिक अपेक्षाओं जैसे विषयों की खोज पर केंद्रित हैं। उनका उपन्यास "पुरुषार्थ" एक ऐतिहासिक कृति है जिसने पितृसत्तात्मक समाज में आत्म-पहचा
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पं० दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की वर्तमान में प्रासंगिकता प्रो0 विनीता पाठक, आचार्या, राजनीतिक विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर। | दीपक कुमार, शोध छात्र, राजनीतिक विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर। Page No.: 144-146|
Year: 2024|
Vol.: 22|
Issue: I
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स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम उभर कर सामने आता है जिसने भारतीय राजनीति में समाप्त हो रही शुचिता, नैतिकता, उत्तरदायित्व बोध, निःस्वार्थ परसेवा भाव, निष्पक्षता जैसे आदि मुल्यों को पुर्नस्थापित करने के लिए अपना संम्पूर्ण जीवन राष्ट्र सेवा को समर्पित कर दिया जिसे हम आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से जानते हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 ई० को मथुरा जिले के एक छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ था। इनके पिता भगवती प्रसाद एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे और मां श्रीमती राम प्यारी देवी एक धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी। कम उम्र में ही दीनदयाल जी को अपने माता-पिता के प्यार से वंचित होना पड़ा। अपनी अकादमिक स्तर की शिक्षा दीक्षा मामा श्री राधारमण शुक्ल के सहयोग से पूरा किया। और आगे चलकर दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक में एक सेवक की भांति प्रवेश किया और अपनी प्रतिभा के बल पर एक दिन संघ के अध्यक्ष पद तक पहुंचे। अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अपूर्व मेधा के धनी पंडित दीनदयाल ने मूल्य आधारित राजनीति करते हुए भारतीय राजनीति में विपक्ष के
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं में महिला चेतना की खोजः एक नारीवादी दृष्टिकोण संत कुमार साहू, शोधार्थी, द ग्लोकल यूनिवर्सिटी सहारनपूर (उ.प्र.) | डॉ. नवनीता भाटिया, शोध निर्देशक (एसोसिएट प्रोफेसर), द ग्लोकल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एडं सोशल साइंस (उ.प्र.) Page No.: 143-148|
Year: 2024|
Vol.: 21|
Issue: I
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इस शोध में, सुर्यकांत त्रिपाठी निराला के कामों में महिला संवेदनशीलता की चित्रण की जांच के लिए एक नारीवादी दृष्टिकोण का उपयोग किया गया है। उनकी कविताओं, उपन्यासों, और निबंधों के माध्यम से, निराला, समकालीन हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, महिलाओं की स्वायत्तता, पितृसत्ता के खिलाफ संघर्ष, महिला सेक्सुअलिटी, और सहानुभूति जैसे विषयों का अध्ययन करते हैं। यह शोध पितृसत्तात्मक मानकों पर हमला करता है और निराला के लैंगिक समानता पर उनके प्रगतिशील विचारों को प्रकट करता है। इसका उद्देश्य निराला के का
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नारी विद्रोह के भारतीय मंच दीप्ति कुमारी, रिसर्च स्कॉलर, हिंदी विभाग, मगध विश्वविधालय Page No.: 133-137|
Year: 2018|
Vol.: 10|
Issue: I
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संस्कृति के आयाम आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक और सृजनात्मक उपादानों तक बहुत दूर तक फैले हैं। संस्कृति का विकास मानव की जैविक स्तर पर एक सुसंगठित व्यवस्था की ओर अग्रसर होती यात्रा का परिणाम है। संस्कृति के लिए प्राचीनतम शब्द कृष्टि है जिनकी उत्पत्ति संस्कृत की कर्ष धातु से मानी जाती है। जिसका अर्थ है खेती करना, संवर्द्धन करना, बोना आदि। जिसका सांकेतिक और लाक्षणिक अर्थ होगा - जीवन की मिट्टी को जोतना और बोना। कृषि के लिए जिस प्रकार भूमि शोधन और निर्माण की प्रक्रिया आवश्यक है उसी प्रकार संस्कृति
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कुन्तोः सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों के विघटन को चित्रित करता उपन्यास डॉ. रामदेव सिंह भामू, आचार्य, शोध-पर्यवेक्षक (हिन्दी विभाग) राजकीय विज्ञान महाविद्यालय, सीकर (राज.) | पवन कुमार मीना, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय, सीकर (राज.) एवं सहायक आचार्य (हिन्दी) राजकीय महाविद्यालय, कनवास, कोटा (राज.) Page No.: 147-150|
Year: 2025|
Vol.: 23|
Issue: SpecialEdition
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कुन्तो उपन्यास में वर्तमान काल में भारतीय नाते-रिश्तों में आ रही टूटन व अपवित्रता का चित्रण है। इसमें भारतीय युवा वर्ग का पश्चिमी संस्कृति के प्रति बढ़ता लगाव एवं भारतीय संस्कृति व नैतिकता का खुला उल्लंघन दर्शाया गया है। आज का युवा वर्ग स्वच्छंदतावाद का समर्थक एवं भारतीय दाम्पत्य जीवन की गरिमा को ध्वस्त करता दृष्टिगोचर होता है। इसमें वृद्धजनों की अश्लीलतापूर्ण एवं निर्लज्जतापूर्ण हरकतों के माध्यम से नैतिक मूल्यों के विघटन को उजागर किया गया है। इसमें भोग-विलास की बढ़ती लालसा और स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में बढ़ती कुण्ठा, टूटन, अविश्वास व निराशा को प्रदर्शित किया है। आज के युवा वर्ग में बढ़ती हुई नशे की प्रवृत्ति तथा उसके भीषण परिणाम की अभिव्यक्ति हुई है। इसमें एक तरफ नारी के प्रेमपूर्ण समर्पण, विश्वास, अपनत्व भावना, सहयोग भावना, आशा, दया, लज्जा, करुणा, सब्र व ममता जैसे उच्च मानवीय मूल्य दृष्टव्य है, तो दूसरी तरफ पुरुष की कठोरता, रूखापन, अजनबीपन, अश्लीलता, लापरवाही, विलासिता, लालसा, रूप के प्रति आसक्ति, घृणा, द्वेषपूर्ण और शोषणपूर्ण रवैया सामने आता है। यहाँ देह व्यापार की घृणित मानसिकता को व्यक्त किया गया है। इसमें पड़ोसियों की स्वार्थपरता, धोखेबाजी, लूटपाट व अनाचार द्वारा नैतिकता का पतन चित्रित किया है। आज के युवा वर्ग की वार्तालाप सम्बन्धी संस्कारहीनता, व्यंग्यपूर्ण तथा उलाहनापूर्ण ढंग का प्रदर्शन दिखाई देता है। कुन्तो उपन्यास में धनराज और जयदेव की निष्ठुरता, हृदयहीनता व निकृष्टता का यथार्थ चित्रण है जो अपनी सहचरी की मृत्यु पर खुश होकर प्रेमिका के प्रति आसक्ति में मग्न रहते हैं। इसमें आधुनिक पीढ़ी मूल्यहीनता और बदलते सांस्कृतिक स्वरूप की परिचायक है।
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कुबेरनाथ राय के समकालीन निबन्धकारा का तुलनात्मक समीक्षण सुषमा, शोधकर्ता(हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर(राजस्थान) | डॉ. पूनम लता मिड्ढा, सहायक प्रोफेसर(हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर(राजस्थान) Page No.: 217-226|
Year: 2022|
Vol.: 17|
Issue: III
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हिंदी निबंध लेखन का विकास भारतेंदु और छायावाद जैसे महत्वपूर्ण कालखंडों से काफी प्रभावित हुआ है, जहां भारतेंदु हरिश्चंद्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी और कुबेरनाथ राय जैसे प्रमुख निबंधकारों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। इन प्रभावशाली लेखकों ने सांस्कृतिक पहचान से लेकर सामाजिक मूल्यों तक विविध विषयों को संबोधित किया और साहित्यिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बहुभाषी विद्वान हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ऐतिहासिक अध्ययन और आलोचनात्मक निबंधों में गहरा योगदान देकर पद्म भूषण और साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कार
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आधुनिक हिंदी कविता में व्यक्त प्रेमानुभूति कांता देवी, शोधार्थी, पीएच. डी., हिंदी विभाग , श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय,हनुमानगढ़ Page No.: 170-171|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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‘प्रेमन’ भाववाचक संज्ञा शब्द है। यह शब्द संस्कृत में नपुंसक लिंग तथा हिंदी में दोंनों लिंगों में प्रयुक्त होता है। प्रसिद्ध वाचस्पत्य कोष में इसकी व्युत्पत्ति ‘प्रिय’ शब्द से की गई है: यथा, ‘‘प्रियस्य भावः इमनिच् प्रत्यय प्रादेशः।’’ प्रियस्य भावः = प्रेमा (पुल्लिंग)। प्रिय ‘प्र’ प्रकृति तथा भावार्थक ‘इमन्’ प्रत्यय से ‘प्रेमा’ शब्द निष्पन्न हुआ। इसलिए ‘प्रेमन’ का अर्थ हुआ ‘प्रियता’, प्रिय का भाव या प्रिय होना। ‘प्रेमन’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्री’ (अर्थात प्रसन्न करना, आनंद लेना या आनन्दित होना
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हज़ारी प्रसाद द्विवेदी कृत "बाणभट्ट की आत्मकथा" में बुद्ध-शिक्षाओं का प्रभाव सरोज देवी शर्मा, शोधार्थी, पीएच. डी., हिंदी विभाग , श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय, पीलीबंगा, हनुमानगढ़ Page No.: 172-173|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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‘बाणभट्ट की आत्मकथा’में बाबा के रूप में द्विवेदी जी का साहित्य बुद्ध की षिक्षाओं से प्रभावित है। घोषणा करते हैं- ‘‘देख रे, तेरे शास्त्र तुझे धोखा देते हैं। जो तेरे भीतर सत्य है, उसे दबाने को कहते हैं, जो तेरे भीतर मोहन है, उसे भुलाने को कहते हैं, जिसे तूं पूजता है उसे छोड़ने को कहते हैं। मायाविनी है यह मायाविनी, तू इसके जाल में न फँस।’’ ‘‘इस ब्रह्मांड का प्रत्येक अणु देवता है। देवता ने जिस रूप में तुझे सबसे अधिक मोहित किया है, उसी की पूजा कर।’’ द्विवेदी जी का साहित्य बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभ
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दलित आंदोलन और साहित्यिक सक्रियता: हिंदी साहित्य से समाजशास्त्रीय अंतर्दृष्टि दीपक, शोधकर्ता, हिंदी विभाग, नीलम विश्वविद्यालय, कैथल (हरियाणा) | डॉ. कमला देवी, प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, नीलम विश्वविद्यालय, कैथल (हरियाणा) Page No.: 226-235|
Year: 2024|
Vol.: 22|
Issue: III
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यह शोध हिंदी साहित्य के क्षेत्र में दलित आंदोलनों और साहित्यिक सक्रियता के संगम की खोज करता है। यह जांचता है कि सदियों से चले आ रहे जातिगत उत्पीड़न में निहित दलित आख्यान किस तरह साहित्य को प्रतिरोध और आत्म-अभिव्यक्ति के रूप में इस्तेमाल करते हैं। समाजशास्त्रीय ढाँचों का उपयोग करते हुए, अध्ययन हाशिए पर पड़ी आवाज़ों को बुलंद करने, पहचान की राजनीति को बढ़ावा देने और सामाजिक सुधार में योगदान देने में साहित्यिक सक्रियता की भूमिका की जांच करता है। अंतःविषय दृष्टिकोण के माध्यम से, यह शोधपत्र सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के एक उपकरण के रूप में दलित साहित्य की परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।
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साहित्य में सौंदर्य और सांस्कृतिक चेतना: कुबेरनाथ राय के कार्य के सार का अनावरण सुषमा, शोधकर्ता (हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर(राजस्थान) | डॉ. पूनम लता मिड्ढा, सहायक प्रोफेसर(हिंदी विभाग), सनराइज़ विश्वविद्यालय, अलवर(राजस्थान) Page No.: 221-228|
Year: 2023|
Vol.: 19|
Issue: II
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इस अनुसंधान पत्र में हम कुबेरनाथ राय की साहित्यिक रचनाओं में सौंदर्य और सांस्कृतिक चेतना के बीच गहरे संबंध की खोज करेंगे। राय, एक प्रमुख लेखक, ने भारतीय साहित्य को महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो सांस्कृतिक नाटकों की समृद्धि में डूबे हुए जटिल कहानियों को बुनता है। इस लेख का उद्देश्य राय की सौंदर्य अन्वेषण को विश्लेषित करना, केवल एक आकृतिक अवधारणा के रूप में नहीं, बल्कि उसे एक माध्यम के रूप में उच्चारित और समर्पित किया जाता है जिसके माध्यम से सांस्कृतिक चेतना को प्रकट और समर्थित किया जाता है।
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हाशिए पर पड़े समूहों का प्रतिनिधित्व: एस.आर. हरनोट की लघु कथाओं में सामाजिक यथार्थवाद विपन कुमार, शोधकर्ता, हिंदी विभाग, गलोकल विश्वविद्यालय, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) | डॉ. नवनीता भाटिया, सह – प्राध्यापक, हिंदी विभाग, गलोकल विश्वविद्यालय, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) Page No.: 263-271|
Year: 2022|
Vol.: 18|
Issue: III
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एस.आर. हरनोट, एक प्रमुख समकालीन हिंदी लेखक, दलितों, महिलाओं और ग्रामीण गरीबों सहित कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के अपने शक्तिशाली चित्रण के लिए जाने जाते हैं। उनकी लघु कथाएँ इन हाशिए के समुदायों की सामाजिक वास्तविकताओं में गहराई से उतरती हैं, जो प्रणालीगत उत्पीड़न के सामने उनके संघर्ष, लचीलापन और आकांक्षाओं को प्रस्तुत करती हैं। यह शोधपत्र इस बात की पड़ताल करता है कि हरनोट इन समूहों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सामाजिक यथार्थवाद का उपयोग कैसे करते हैं, जाति, वर्ग और लिंग के प्रतिच्छेदन पर जोर देते
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कबीर समाज सुधारक के रूप में Premlata, Research Scholar (Hindi), Janaradan Rai Nagar Vidyapeeth, Udaipur (Rajasthan). | Dr. Rennu, Professor (Hindi), Janaradan Rai Nagar Vidyapeeth, Udaipur (Rajasthan). Page No.: 230-233|
Year: 2019|
Vol.: 11|
Issue: I
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समाजसुधारक के रूप विख्यात संत काव्यधारा के प्रमुख कवि कबीर का नाम हिन्दी साहित्य में बडे़ आदर के साथ लिया जाता है। कबीर समाज सुधारक पहले तथा कवि बाद में है। उन्होने समाज में व्याप्त रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होने धर्म का सम्बन्ध सत्य से जोड़कर समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परम्परा का खण्डन किया है। कबीर ने मानव जाति को सर्वश्रैष्ठ बताया है
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महात्मा गान्धी उच्च प्राथमिक विद्याल्यो मे विध्यर्थियो के सम्मुख आने वाली सम्स्याओ एव्म उनके समाधान का अध्ययन रश्मि दाधिच, शोधार्थि, अपेक्स विश्वविधालय, जयपुर | डॉक्टर पूनम मिश्रा, शोध पर्यवेक्षक, अपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर Page No.: 291-295|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: I
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इस अध्ययन का उद्देष्य महात्मा गांधी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के सम्मुख आने वाली समस्याओं का अध्ययन करना एवं समस्याओं के लिए समाधान प्रस्तुत करना था। प्रस्तुत षोध अध्ययन में वर्णनात्मक सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है। उद्धेष्यपरक विधि का अनुसरण करते हुए प्रस्तुत षोध अध्ययन में न्यादर्ष के लिए राजस्थान राज्य के बूंदी जिले के महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के 400 विद्यार्थियों का चयन किया गया है। प्रस्तुत षोध अध्ययन में स्वनिर्मित प्रष्नावली एवं साक्षात्कार अनुसू
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निराला की महिलाएँः प्रतिरोध और तन्यकता का एक अध्ययन संत कुमार साहू, शोधार्थी, द ग्लोकल यूनिवर्सिटी सहारनपूर (उ.प्र.) | डॉ. नवनीता भाटिया, शोध निर्देशक (एसोसिएट प्रोफेसर), द ग्लोकल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एडं सोशल साइंस (उ.प्र.) Page No.: 275-280|
Year: 2023|
Vol.: 19|
Issue: III
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यह पेपर सुर्यकांत त्रिपाठी निराला के लेखन में महिलाओं के प्रतिरूपण की खोज करता है, जो आधुनिक हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण आदर्श हैं। प्रतिरूपण के विषयों पर ध्यान केंद्रित करके, अध्ययन यह देखता है कि निराला की महिला पात्रियों ने पितृसत्तात्मक निर्णयों को चुनौती दी और विपरीतता के मुँह से शक्ति दिखाई। उनके लेखों को शामिल विचारधारा-राजनीतिक मंजर में रखकर, पेपर उस सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभाव को उजागर करता है जिसने उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण को रूपांतरित किया। उनकी साहित्यिक तकनीकों के विस्तृत विश्
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स्त्री विमर्श और हिन्दी उपन्यास डॉ. सीमा सुरोलिया, व्याख्याता, हिन्दी विभाग, जगदम्बा पी.जी. कॉलेज, खाजूवाला (बीकानेर) Page No.: 282-283|
Year: 2024|
Vol.: 21|
Issue: III
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इस सदी के साहित्य का केंद्रीय विषय स्त्री विमर्श और दलित साहित्य है। यद्यपि हमारी परम्परा में सभी प्रकार का आदर्श स्त्री के खाते में जमा दिखाई देता है, परन्तु जब इसे कसौटी पर कसते हैं. तो वह भरभराकर गिर जाता है। आये दिन सभी प्रकार का अन्याय उसके साथ घटित होता हुआ दिखाई देता है। यह विरोधाभासी स्थिति है। मृणाल पांडेय स्त्री विमर्ष में हस्तक्षेप करते हुए लिखती हैं, ’’समाज में स्त्रीत्व की मूल अवधारणा नकारात्मक है। लगभग सभी धार्मिक और दार्शनिक दायरे में स्त्री को पुरूष के संदर्भ में एक अपूर्ण और सापेक्ष्य जीवन के रूप में देखा गया है। वास्तविकता यह है कि नारी को उसके अपेक्षित सम्मान के साथ नहीं देखा गया है। इन्हीं स्थितियों का चित्रण हिंदी उपन्यासों में किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र में स्त्री विमर्ष और हिंदी उपन्यास पर विचार किया गया है।
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दिव्यांग विद्यार्थियों के उन्नयन हेतु सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के प्रति विशिष्ट बी. एड. प्रशिक्षनर्थियो की जागरूकता का अध्ययन रीना राठौड़, शोधार्थि, अपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर | डॉक्टर पूनम मिश्रा, शोध पर्यवेक्षक, अपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर Page No.: 296-299|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: I
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प्रस्तुत अध्ययन का उद्देष्य दिव्यांग विद्यार्थियों के उन्नयन हेतु सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के प्रति विषिष्ट बी.एड. प्रषिक्षणार्थियों की जागरूकता का अध्ययन करना था। इस हेतु सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। प्रस्तुत अध्ययन में कोटा संभाग के विषिष्ट षिक्षक षिक्षा कार्यक्रम में अध्ययनरत् 400 विषिष्ट बी.एड. प्रषिक्षणार्थियों को अध्ययन के न्यादर्ष के रूप में चयनित किया गया। शोध उपकरण के लिए स्वनिर्मित जागरूकता मापनी का निर्माण किया गया। प्रदत्तों को विष्लेषित करने के लिए मध्यमान, प्रमाप विचल
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विद्यापति की काव्य संवेदना के अन्तः स्त्रोत और उनका कलात्मक विन्यास का संक्षिप्त विश्लेषण Suman Kumar, Research Scholar, Dept. of Hindi, Maharaja Agrasen Himalayan Garhwal University | Dr. Brajlata Sharma, Professor, Dept. of Hindi, Maharaja Agrasen Himalayan Garhwal University Page No.: 244-251|
Year: 2023|
Vol.: 20|
Issue: SpecialEdition
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विद्यापति मैथिल कवि थे और मिथिला के रहने वाले थे। मैथिली मागधी प्राकृत से निकली होने के कारण हिन्दी का अंग न होकर बिहारी भाषा के अन्तर्गत आती है। विद्यापति अपनी कोमल कान्त पदावली के कारण ‘‘मैथिल कोकिल’’ के नाम से पुकारे जाते हैं और मिथिला निवासियों को इन पर गर्व है। काव्य-भाषा का तात्पर्य काव्य के भाव चित्रों को आधार प्रदान करने वाली वह भक्ति जिसके माध्यम से भाषा की कोटि को श्रेणीबद्ध किया जाता है, अर्थात् जिससे गद्य, बोलचाल की भाषा और काव्य की भाषा में अन्तर को समझा जाता है। काव्य-भाषा, जन-भाषा
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एस.आर. हरनोट की कहानियों में हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पीढ़ीगत असंतोष और भौतिकवाद की पड़ताल विपन कुमार, शोधकर्ता, हिंदी विभाग, गलोकल विश्वविद्यालय, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) | डॉ. नवनीता भाटिया, सह – प्राध्यापक, हिंदी विभाग, गलोकल विश्वविद्यालय, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) Page No.: 317-327|
Year: 2023|
Vol.: 19|
Issue: SpecialEdition
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यह शोधपत्र प्रसिद्ध साहित्यकार एसआर हरनोट की अनूदित कहानियों का विश्लेषण करने का एक प्रयास है, जिनका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है और खेम राज शर्मा और मीनाक्षी एफ. पॉल द्वारा संपादित कैट्स टॉक नामक पुस्तक में संकलित किया गया है। इसका उद्देश्य यह स्थापित करना है कि आधुनिक दुनिया ने एक ऐसा समाज बनाया है, जहाँ वृद्ध माता-पिता को अपने घरों में खुद की देखभाल करने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है, क्योंकि उनके बच्चे नौकरी और अपने परिवारों के लिए बेहतर जीवन स्तर की तलाश में गाँवों और कस्बों से बड़े शहरो
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गोस्वामी तुलसीदास और रामचरितमानस किरण, शोधार्थी, टांटिया विश्वविद्यालय, श्री गंगानगर | डॉ0 मोनिका व्यास, सहायक आचार्य हिन्दी, टांटिया विश्वविद्यालय, श्री गंगानगर Page No.: 436-437|
Year: 2024|
Vol.: 21|
Issue: I
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तुलसीदास का रामचरितमानस भारत की समस्त जनता का हृदय हार है। पूरे भारतवर्ष में आम जनता से लेकर प्रबुद्धवर्ग तक रामचरित मानस को श्रद्धा व आदर प्राप्त है। करोडा़े लोग मानस की स्तुति एवं पाठ करने के पश्चात् अन्न जल ग्रहण करते है। तुलसीदास ने स्वयं माना है कि श्री रामचरितमानस का स्थान हिन्दी साहित्य में ही नहीं जगत के साहित्य में निराला है। रामचरितमानस तुलसीदास का एक अप्रतिम काव्य हैं। यह सरसता, प्रभावोत्पादकता, गंभीरता एवं भावप्रेषणीयता की दृष्टि से, सुव्यस्थित कथा योजना की दृष्टि से, राम में भक्ति शील एवं सौन्दर्य की प्रतिष्ठा की दृष्टि से तथा उत्कृष्ट शील निरूपन एवं काव्य सौष्ठता की दृष्टि से यह एक अतुलनीय काव्य है। डा. भगवानशरण भारद्वाज के अनुसार “रामचरितमानस भारत की चिरन्तन संस्कृति का निर्मल दर्पण है, और भारतीय जनता के स्वप्नों और आकांक्षाओं का ज्वलन्त दस्तावेज है।“ ‘‘भक्ति कालीन रामकाव्य का साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रभाव में तुलसीदास की भूमिका और लोकभाषा के माध्यम से धार्मिक पुनर्जागरण की चर्चा की गई है।‘‘ रामचरितमानस तुलसी का एक कीर्ति स्मारक ग्रन्थ है इस महाकाव्य से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि पिता-पुत्रा, भाई-भाई, पति-पत्नी तथा राजा-प्रजा के सम्बन्ध किस प्रकार के होने चाहिए, कैसे एक मर्यादावादी व आदर्शवादी समाज की स्थापना की जा सकती है। रामचरितमानस का अन्वेक्षण करने के उपरांत लगता है कि किस प्रकार राम लक्ष्मण का स्नेह, पिता दशरथ की कार्य कर्मठता व संवेदनशीलता तथा पत्नी सीता की त्याग भावना हमारी अन्तः चेतना को झंकृत करती है। ऐसे मर्यादा, शिष्टता, नम्रता, सरसता, आत्मीयता, गम्भीरता, सरलता व भावप्रेषणीयता के अनेक उदाहरण मानस मंे सुलभ है।
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AI के सामाजिक परिणाम वह चुनौतियाँ मनीष कुमार, एम.ए. हिंदी, नेट केटेगरी. 03, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर Page No.: 366-369|
Year: 2025|
Vol.: 23|
Issue: SpecialEdition
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आज विश्व आधुनिकता की चादर में अपने पाँव लगातार प्रसार हो रहा है।इस आधुनिकता में समाज का विकास दिन दुगुना रात चौगुना हो रहा है।विश्व के विभिन्न देश प्रतिस्पर्धात्मक रूप से आगे बढ़ रहे हैं तथा साथ ही साथ दिन प्रतिदिन नए अविष्कार व नवाचार कर रहे हैं,जो अत्यंत सराहनीय है। यह हमारे समाज तथा मानव मस्तिष्क की एक खास बात है कि यह सदैव चिंतन करता है तथा हर पल इस संसार के रहस्यों को सुलझाने तथा कुछ नवाचार करने की प्रेरणा से अभिभूत होता रहता है।इन्हीं खोजों में सर्वप्रचलित तथा सबसे महत्वपूर्ण खोज है, इंटरनेट तथा उससे चलने वाले महत्वपूर्ण यंत्रों की खोज। आज संसार इंटरनेट की दुनिया में बहुत आगे बढ़ गया है तथा वर्तमान में ।प्(आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के स्वरूप में जो चीजें सामने आई है,वास्तव में वह हैरतअंगेज कर देने वाली है, ।प् ने वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को ही बदल दिया है।इससे कुछ नकारात्मक पहलू भी जुड़े हुए हैं।जिसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
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कबीर और तुलसीदास के रामः आस्था. दर्शन और सामाजिक चेतना के आयाम डॉ. सीमा सुरोलिया, व्याख्याता, हिन्दी विभाग, जगदम्बा पी.जी. कॉलेज, खाजूवाला (बीकानेर) Page No.: 534-535|
Year: 2023|
Vol.: 19|
Issue: I
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भारतीय भक्ति साहित्य में कबीरदास और गोस्वामी तुलसीदास दो ऐसे अप्रतिम व्यक्तित्व है. जिन्होंने ’राम’ नाम को अपनी-अपनी तरह से परिभाषित किया और जनमानस मैं गहरी पैठ बनाई। जहॉ तुलसीदास काराम सगुण. मर्यादा पुरूषोतम और अवतार रूप में पूजे जाते हैं. वहीं कबीर के राम निर्गुण. निराकार और घट-घट वासी ब्रहम है। इन दोनों के राम-दर्षन में मूलभूत अंतर होने के बावजूद. उनका अंतिम लक्ष्य मानव कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति ही रहा है। तुलसीदास के रामः मर्यादा. प्रेम और लोक-मंगल के प्रतीक तुलसीदास के राम. जैसा कि उनके अमर ग्रंथ ’रामचरितमानस’ में वर्णित है. सगुण ब्रहम का साकार रूप हैं। वे दशरथनंदन. सीतापति. और अयोध्या के राजा है। तुलसीदास ने राम को एक आदर्श पुत्र. आदर्श भाई. आदर्श पति. आदर्श मित्र और आदर्श राजा के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके राम करूणा. धैर्य. शौर्य. त्याग और प्रेम के साक्षात प्रतीक है। ’रामचरितमानस’ में राम का जीवन केवल एक राजा का जीवन नहीं है. बल्कि वह धर्म. नीति और मर्यादा का आदर्श प्रस्तुत करता है। तुलसीदास के राम का अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य दुष्टों का संहार और सज्जनों का उद्धार करना है। वे लोक-मंगल की भावना से ओतप्रोत है। उनके चरित्र में हमें मानवीय दुर्बलताओं से ऊपर उठकर आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। तुलसीदास ने राम के माध्यम से तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों. अनीति और अधर्म पर प्रहार किया। वे वर्ण व्यवस्था के समर्थक भले ही रहे हों. लेकिन उन्होंने राम के दरबार में शबरी. निषादराज जैसे निम्न वर्ग के लोगों को भी सम्मान दिलाया. जिससे यह संदेश मिलता है कि ईश्वर की भक्ति में कोई भेद नहीं होता।
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